Wednesday, August 19, 2015

जैसे कभी पिता चला करते थे, - भारत भूषण



जैसे कभी पिता चला करते थे,
वैसे ही अब मैं चलता हूँ !
भरी सड़क पर बायें-बायें
बचता-बचता डरा-डरा-सा,
पौन सदी कंधों पर लादे
भीतर-बाहर भरा-भरा सा,
जल कर सारी रात थका जो
अब उस दिये-सा मैं जलता हूँ !
प्रभु की कृपा नहीं कम है ये
पौत्रों को टकसाल हुआ हूँ ,
कुछ प्यारे भावुक मित्रों के
माथे लगा गुलाल हुआ हूँ,
'मिलनयामिनी' इस पीढ़ी-को
सौप स्वयं बस वत्सलता हूँ !
कभी दुआ-सा कभी दवा-सा
कभी हवा-सा समय बिताया
संत-असंत रहे सब अपने
केवल पैसा रहा पराया,
घुने हुये सपनों के दाने,
गर्म आसुओं में तलता हूँ !!

Wednesday, August 5, 2015

कुछ आंसू बन गिर जाएंगे, कुछ दर्द चिता तक जाएंगे, उनमें ही कोई दर्द तुम्हारा भी होगा ! - रमानाथ अवस्थी


कुछ आंसू बन गिर जाएंगे, कुछ दर्द चिता तक जाएंगे
उनमें   ही   कोई   दर्द   तुम्हारा   भी    होगा !

सड़कों पर मेरे पाँव हुए कितने घायल
यह बात गाँव की पगडंडी बतलायेग,
सम्मान-सहित हम सब कितना अपमानित हैं
यह चोट हमें जाने कब तक तड़पायेगी,
कुछ टूट रहे सुनसानों में कुछ टूट रहे तहखानों में
उनमें  ही  कोई  चित्र  तुम्हारा  भी  होगा !

वे भी दिन थे, जब मरने में आनन्द मिला
ये भी दिन हैं , जब जीने से घबराता हूँ ,
वे भी दिन बीत गये हैं , ये भी बीतेंगे
यह सोच किसी सैलानी-सा मुस्काता हूँ ,
कुछ अँधियारों में चमकेंगे , कुछ सूनेपन में खनकेंगे
उनमें ही कोई स्वप्न तुम्हारा भी होगा !

अपना ही चेहरा चुभता है काँटे जैसा
जब संबंधों की मालाएँ मुरझाती हैं ,
कुछ लोग कभी जो छूटे पिछले मोड़ों पर
उनकी यादें नीदों में आग लगाती है ,
कुछ राहों में बेचैन खड़े , कुछ बाँहों में बेहोश पड़े
उनमें ही कोई प्राण तुम्हारा भी होगा !

साधू हो या साँप , नहीं अन्तर कोई
जलता जंगल दोनों को साथ जलाता है ,
कुछ वैसी ही है आग हमारी बस्ती में
पर ऐसे में भी कोई-कोई गाता है ,
कुछ महफ़िल की जय बोलेंगे कुछ दिल के दर्द टटोलेंगे
उनमें ही कोई गीत तुम्हारा भी होगा !
   

Saturday, August 1, 2015

तुमने मुझे बुलाया है, मैं आऊँगा, बंद न करना द्वार देर हो जाए तो ! - रमानाथ अवस्थी



तुमने मुझे बुलाया है, मैं आऊँगा,
बंद न करना द्वार देर हो जाए तो !

अनगिन सांसों का स्वामी होकर भी निरा अकेला हूँ,
पाँव थके हैं दिन-भर अपनी माटी के संग खेला हूँ;
चरवाहे  की  रानी-जैसी  सुन्दर  मेरी  राह  है,
मुझको अपने से ज़्यादा सुन्दरता की परवाह है;
मेरे आने तक मन में धीरज धरना,
चाँद देख लेना यदि मन घबराए तो !

महकी-महकी सांसों-वाले फूल बुलाते हैं मुझे,
पर फूलों के संगी-साथी शूल रुलाते हैं मुझे;
लेकिन मुझ यात्री का इन शूलों-फूलों से मोह क्या,
मेरे मन का हंसा इनसे अनगिन बार छला गया;
मुझसे मिलने की आशा में सह लेना,
यदि तुमको दुनिया का दर्द सताए तो !

मेरी मंज़िल पर है रवि की धूप, बदलियों की छाया,
मैं इन दोनों की सीमाओं के घर में भी सो आया;
लेकिन मुझको तो छूना है सीमा उस श्रंगार की,
जिसके लिए टूटती है हर मूरत इस संसार की;
मैं न रहूँ तब मेरे गीतों को सुनना,
जब कोई कोकिल जंगल में गाए तो !

धो देते हैं बादल जब-तब धूल-भरे मेरे तन को,
लेकिन इनसे बहुत शिकायत है मेरे प्यासे मन को;
मरुथल में चाँदनी तैरती लेकिन फूल नहीं खिलते,
मन ने जिनको चाहा अक्सर मन को वही नहीं मिलते;
मेरा और तुम्हारा मिलना तो तय है,
शंकित मत होना यदि जग बहकाए तो !