Thursday, September 10, 2015

एक दिया चलता है आगे- आगे अपने ज्योति बिछाता - कृष्ण मुरारी पहारिया

एक दिया चलता है आगे-
आगे अपनी ज्योति बिछाता
पीछे से मैं चला आ रहा
कंपित दुर्बल पाँव बढाता

दिया जरा-सा, बाती ऊँची
डूबी हुई नेह में पूरी
इसके ही बल पर करनी है
पार समय की लम्बी दूरी


दिया चल रहा पूरे निर्जन
पर मंगल किरणें बिखराता

तम में डूबे वृक्ष-लताएँ
नर भक्षी पशु उनके पीछे
यों तो प्राण सहेजे साहस
किन्तु छिपा भय उसके नीचे

ज्योति कह रही, चले चलो अब

देखो वह प्रभात है आता