Thursday, October 1, 2015

तुम चिन्तन के शिखर चढ़ो..............सीमा अग्रवाल



तुम चिन्तन के शिखर चढ़ो ..........
तुम पन्नों पर सजे रहो, अधरों - अधरों बिखरेंगे
तुम बन ठन कर घर में बैठो, हम सड़कों से बात करें
तुम मुठ्ठी में कसे रहो, हम पोर-पोर खैरात करें
इतराओ गुलदानों में, हम मिट्टी में निखरेंगे
तुम अनुशासित झीलों जैसे, हल्का-हल्का मुस्काते
हम अल्हड़ नदियों सा हँसते, हर पत्थर से बतियाते
तुम चिन्तन के शिखर चढ़ो हम चिन्ताओं में उतरेंगे !