तुमने जो आरती सजायी, मेरा मन हो गया कपूरी
इसी तरह से तय होती है, दुखते पल से सुख की दूरी
उस कोने में मूर्ति सजी है, श्याम विराजे बंसी लेकर
उनके आस पास जो रहता, मुस्काते उसको कुछ देकर
तुमने जो सुगंध बिखरायी, बंसी के स्वर मुखर हो गये
और किसी की मैं क्या जानू, मुझको दिये गीत कस्तूरी
झोली में उनके सब कुछ था, तुमने पर स्वीकारी ममता
उसमें करुणा घोल ह्रदय की, पायी है कैसी यह क्षमता
अवसादों का नाम नहीं है, जहाँ जहाँ तक पहुँच तुम्हारी
वृन्दावन उतनी धरती है, जितनी यह चहारदीवारी
छन्द यहाँ ऐसे झरते हैं, जैसे यह उनकी मज़बूरी