Saturday, February 28, 2015

अनिल सिन्दूर की कहानी : उम्र कैद से मुक्ति

               उम्र कैद से मुक्ति           अनिल सिन्दूर
# माँ की गोद में बैठ उनके आँसुओं को बहते देखती रहना जैसे मेरा रोज का काम हो गया था और माँ का कस कर मुझे भींच लेना जैसे अपने दुःख को समेटकर अपने आगोश में समा लेना !
# घर में भाई , दादा-दादी सगे-सम्बन्धी सभी नाखुश थे ! लेकिन मैंने गवाही देकर अपने को जैसे उम्र कैद से मुक्त कर लिया था !

मैं अपनी माँ की बेहद चहेती संतान थी ! माँ चाहती थी कि मैं बड़ी होकर खूब पढूं लिखूं  और परिवार का नाम रोशन करूँ ! क्यों कि उसने अशिक्षित होने का दंश जीवन भर भोगा था ! माँ का जन्म एक ऐसे अछूत परिवार में हुआ था जिसे कोई छूना भी पसंद नहीं करता था ऐसी जातिओं के बच्चों का पढ़ना लिखना एक दिवा स्वप्न था ! सो मेरी माँ भी अशिक्षित रह गयी थी ! घर में सभी को काम करना पड़ता था तभी घर खर्च ठीक तरह से चल पाता था ! नाना ने मेरी माँ की शादी  एक ऐसे लड़के से कर दी जो स्वयं तो नौकरी में था ही और उनकी लड़की को भी नौकरी दिला सकता था ! मेरी माँ बेहद सुन्दर थी ! माँ जब पिता जी के घर ब्याह कर आयी तो तमाम सपने अपने साथ लेकर आयी लेकिन जैसे-जैसे समय बीता वो सपने एक-एक कर बिखरने लगे थे ! पिता जी शराब के लती थे वो अपनी कमाई की पाई-पाई शराब में उड़ा दिया करते थे ! घर खर्च भी मुश्किल से चल पाता माँ ने भी नौकरी करने का मन बना लिया ! जैसे तैसे माँ को भी नौकरी मिल गयी ! दिन बीतते गए परिवार में बढ़ने लगा मेरे घर एक भाई ने जन्म लिया सब बहुत ख़ुश थे पिता जी भी उनके घर लड़का जो जन्मा था ! लेकिन बाबू जी ने शराब पीनी बंद नहीं की थी उनका शराब पीना लगभग रोज ही का था यदि माँ मना करती तो गालिओं के साथ मार भी खानी पड़ती ! भाई के बाद मेरा जन्म हुआ ! पर मैं माँ पर बोझ सी बन गयी ! क्यों कि तब तक घर की माली हालत और कमजोर हो चुकी थी ! पिता जी ने फिर भी शराब पीना बंद नहीं की थी !
  पिता जी का रोज का कोहराम किसी से छिपा नहीं था ! माँ के साथ होने वाली रोज की घिटपिट मेरे अबोध मन को कचोटती रहती थी लेकिन मैं कुछ भी करने में सक्षम न थी ! माँ की गोद में बैठ उनके आँसुओं को बहते देखती रहना जैसे मेरा रोज का काम हो गया था और माँ का कस कर मुझे भींच लेना जैसे अपने दुःख को समेटकर अपने आगोश में समा लेना ! ऐसे समय न जाने क्यों मैं अक्सर डर जाया करती थी  एक अनजाने डर से, ये डर माँ को देख कर होता था ! जैसे-जैसे मै बड़ी होने लगी समझ मुझे और भी आशंकित करने लगी थी ! भाई घर के माहौल से बेखबर गली मुहल्लों के लड़कों के साथ खेलता रहता था ! घर के माहौल ने उसे ढीठ सा बना दिया था किसी की वो सुनता ही नहीं था ! माँ कुछ कहती तो सुनता ही नहीं था और पिता जी कुछ कहने से रहे वो अपने-आप में ही रहते थे ! पिता जी के व्यवहार से दादा-दादी भी अलग रहने लगे थे ! भाई अक्सर दादा-दादी के पास चला जाता था !
  माँ तमाम कोशिशों के बाद भी घर को बांध नहीं पायी थी उसकी असमर्थता उसके चेहरे पर समय से पहले दिखने लगी थी ! पांच साल की उम्र आते ही मुझे स्कूल भेजने की ज़िद माँ ने की थी मेरा दाखिला भी पास ही के सरकारी स्कूल में माँ ने करवा दिया था ! लेकिन मेरा स्कूल जाना न जाना बराबर ही था ! अक्सर मैं स्कूल नहीं जा पाती थी ! फिर भी माँ को संतोष था मैं पढने जाने लगी थी ! जब मैं दर्जा पांच पास कर छठवीं कक्षा में गयी माँ की प्रसन्नता का ठिकाना नहीं था क्यों कि वो दर्जा पांच तक ही पढ़ सकी थी !
  एक दिन अचानक घर में तूफ़ान सा आ गया था ! पिता जी ने सुबह से ही शराब पी ली थी ! माँ ने जब शराब को और पीने से मना किया तो उन्होंने गालियों की झड़ी लगा दी थी ! माँ का शराब को पीना मना करना उन्हें नागवार लगा और उन्होंने सबक देने की ठान ली लात-घूंसों से उन्होंनें हमला बोल दिया था मैं एक कोने में खड़ी देख रही थी मैं बेहद डर गयी थी ! चाह कर भी में माँ की मदद नहीं कर पा रही थी ! पिता जी गुस्से में घासलेट का डिब्बा उठा लाये थे और रोती माँ को उससे नहला दिया था माँ कमरे की ओर भागी थी लेकिन दरवाजा बंद करने से पहले ही पिता जी ने जलती माचिस की तीली घासलेट से भीगी माँ  पार फेक दी ! माँ धू-धू कर जलने लगी थी ! और बचाने को चीख रहीं थीं लेकिन उनकी कौन मदद करता ! यह सब देख कर मैं माँ की ओर भागी लेकिन बीच में ही पिता जी ने रोक लिया था और कमरे को बाहर से बंद कर दिया था ! कुछ ही देर बाद माँ की चीखने की आवाज आनी बंद हो गयी थी ! मैं दादी की घर की ओर भागी और सारी बात रो कर उन्हें बताई वह माँ को बचाने को दौड़ी लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी ! पिता जी घर से भाग चुके थे थोड़ी ही देर में घर में पुलिस आ गयी थी ! मैंने रो-रो सारी हक़ीकत पुलिस को बता दी थी ! पुलिस पिता जी को खोजने लगी थी ! पिता जी  तमाम कोशिशों के बाद भी पुलिस से नहीं बच सके थे उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया था ! पुलिस से प्राथमिकी भाई ने की थी मुझे चश्मदीद गवाह बनाया गया था ! और फिर शुरू हुआ था अदालत की कार्यवाही का सिलसिला ! भाई ने अदालत में में कह दिया था कि उसने अपनी आँखों से पिता जी को माँ को जिन्दा जलाते नहीं देखा था ! अब सारा दारोमदार मेरी गवाही पर ही था ! दादा-दादी ने अपने बेटे को बचाने को कोई कोर कसर न कर रखी थी उन्हें पूरी आशा थी की मैं अपने पिता के खिलाफ अदालत में गवाह नहीं दूंगी ! उन्होंने तमाम मिन्नतें भी की थी गवाह न देने की  लेकिन मैं भूल नहीं पा रही थी अपनी माँ के साथ किये गए अन्याय को ! चार साल चले लम्बे दौर के बीच हर बार मुझे कोई न कोई बहाना कर अदालत से मुझे दूर रखा गया था ! एक दिन अदालत के सख्त आदेश के चलते मुझे गवाही के लिए अदालत ले जाया गया था ! मैं अपने को न रोक सकी और अदालत के सामने माँ के साथ जो घटा था उसे बोलती चली गयी कैसे, मैं नहीं जानती ! अदालत ने मेरी गवाही पर कुछ दिनों बाद उम्र कैद की सज़ा सुनाई थी ! घर जब यह खबर पहुंची थी मुझे संतोष था मैं किसी के दबाब में झुकी नहीं थी ! घर में भाई , दादा-दादी सगे-सम्बन्धी सभी नाखुश थे ! लेकिन मैंने गवाही देकर अपने को जैसे उम्र कैद से मुक्त कर लिया था !



परिचय


अनिल सिन्दूर
# 28 वर्षों से विभिन्न समाचार पत्रों तथा समाचार एजेंसी में बेवाकी से पत्रिकारिता क्षेत्र में
# पत्रिकारिता के माध्यम से तमाम भ्रष्ट अधिकारियों की करतूतों को उजागर कर सज़ा दिलाने में सफल योगदान साथ ही सरकारी योजनाओं को आखरी जन तक पहुचाने में विशेष योगदान
# वर्ष 2008-09 में बुंदेलखंड में सूखे के दौरान भूख से अपनी इहलीला समाप्त करने वाले गरीब किसानों को न्याय दिलाने वाबत मानव अधिकार आयोग दिल्ली की न्यायालय में उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड के सात जिलों के जिला अधिकारिओं पर मुकद्दमा,
# कथाकार, रचनाकार
# सोशल एक्टिविष्ट
# सोशल थीम पर बनी छोटी फिल्मों पर अभिनय,  रंगमंच कलाकार ,
# ज्ञानवाणी के नाटकों को आवाज़
# खादी ग्रामौद्योग कमीशन बम्बई द्वारा वर्ष 2006 शिल्पी पुरस्कार
# सॉलिड वेस्ट मनेजमेंट  पर महत्वपूर्ण योगदान
संपर्क – मोब. 09415592770

निवास – इस समय कानपूर में निवास  

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