जिन राहों पर चलना है,
तू उन राहों पर चल
!
कहाँ नहीं सूरज की
किरणे, तूफ़ानी बादल !
मन की चेतनता पथ
का अँधियारा हर लेगी,
मंजिल की कामना
प्रलय को वश में कर लेगी,
जिस बेला में चलना
है,
तू उस बेला में चल
!
सपनों का रस मरुथल
को भी मधुवन कर देगा,
हारी-थकी देह में
नूतन जीवन भर देगा,
जिस मौसम में चलना
है,
तू उस मौसम में चल
!
भीतर के संयम की
दासी, बाहर की हलचल !
उठे कदम की खबर
ज़माने को हो जाती है,
अगवानी के लोकगीत
हर दूरी गाती है,
जिस गति से भी
चलना है,
तू उस गति से ही चल,
निर्झर जैसा बह न
सके, तो हिम की तरह पिघल !
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