एक
तरफ
कुहरा
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एक
तरफ
कुहरा
ही
कुहरा, एक
तरफ़
हैं
हम
!
अंतर्मन
सूरज-सूरज,
आँखें
शबनम-शबनम
!
घाटी
के
तल
से
अम्बर
तक
जल
के
रंग
भरे,
ज्यों
समुद्र
मारे
उछाल
शिखरों
को
पार
करे,
एक
तरफ़
जग
गूंगा-बहरा,
एक
तरफ़
सरगम
!
अंतर्मन
सूरज-सूरज,
आँखें
शबनम-शबनम
!
तन
निर्झरी
राह
पर
बहके
फिसल-फिसल
सँभले,
तप्त
देह
पर
मेघ-बसे
क्षण
के
फेनिल
हमले,
एक
तरफ़
तम
दुहरा-तिहरा,
एक
तरफ़
पूनम
!
अंतर्मन
सूरज-सूरज,
आँखें
शबनम-शबनम
!
झील
डूब
चेतन
में
उभरी
है
अवचेतन
में,
गत
के
साथ
अनागत
झाँका
स्वप्निल
दर्पण
में,
एक
तरफ़
सब
ठहरा-ठहरा,
एक
तरफ़
उदगम
अंतर्मन
सूरज-सूरज,
आँखें
शबनम-शबनम
!
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