Tuesday, February 11, 2014

इश्क ख़ुदकुशी कर लेता - प्रोफे. राम स्वरुप 'सिन्दूर'

देर हुई घर आने में !
दिल बैठा तैखाने में !!

क्या बतलाऊँ क्या-क्या था !
मेरे लुटे खजाने में !!

गुलशन रास न आया तो,
लौट पड़ा वीराने में !


इश्क ख़ुदकुशी कर लेता,
मान गया समझाने में !

मुझे चैन सा मिलता है,
दिल-ही-दिल पछताने में !

वो शर्माता है, सिर पर,
अपना बोझ उठाने में !

मसला सुलझा, एक नहीं,
उम्र गयी सुलझाने में !

जिसको मैंने मन्त्र दिया,
मुझे लगा बहकाने में !

उम्र कैद की सज़ा मिली,
इश्क किया बचकाने में !

जिस ने जो चाहा जोड़ा,
पाक-साफ़ अफ़साने में !

सांसें जल-कर खाक हुईं,
दिल की आग बुझाने !

घर- बैठा 'सिन्दूर' मगर,
दिल है कहाँ ठिकाने में !







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