ऐसे क्षण आये जीवन में, माटी कंचन लगे !
नयन रह जाएँ ठगे-ठगे !
तन लहराये अगरु-गंध-सा
मन लहरे किसलय-सा
हर पल लगे प्रणय की वेला
हर उत्सव परिणय-सा,
छाया तक कस लेने-वाला बंधन, कंगन लगे !
नयन रह जाएँ ठगे-ठगे !
अपनी छाया अंकित कर दूँ
इस दिहरी, उस द्वारे,
पानी में प्रतिबिम्ब निहारूं
मन मोहक पट धरे,
चकाचौंध कर देने-वाला सूरज, दर्पण लगे !
नयन रह जाएँ ठगे-ठगे !
इधर प्रभंजन उठे, उधर
मैं उपवन-उपवन डोलूं,
फूलों के उर्मिल रंगों में
धूमिल पलकें धो-लूँ,
गगन-विचुम्बी वातचक्र, नर्तित नंदनवन लगे !
ऐसे क्षण आये जीवन में, माटी कंचन लगे !
नयन रह जाएँ ठगे-ठगे !
तन लहराये अगरु-गंध-सा
मन लहरे किसलय-सा
हर पल लगे प्रणय की वेला
हर उत्सव परिणय-सा,
छाया तक कस लेने-वाला बंधन, कंगन लगे !
नयन रह जाएँ ठगे-ठगे !
अपनी छाया अंकित कर दूँ
इस दिहरी, उस द्वारे,
पानी में प्रतिबिम्ब निहारूं
मन मोहक पट धरे,
चकाचौंध कर देने-वाला सूरज, दर्पण लगे !
नयन रह जाएँ ठगे-ठगे !
इधर प्रभंजन उठे, उधर
मैं उपवन-उपवन डोलूं,
फूलों के उर्मिल रंगों में
धूमिल पलकें धो-लूँ,
गगन-विचुम्बी वातचक्र, नर्तित नंदनवन लगे !
नयन रह जाएँ ठगे-ठगे !
प्रोफे. राम स्वरुप 'सिन्दूर'
No comments:
Post a Comment