मुझको एहसास की चोटी से उतारे कोई !
मेरी आवाज़ में ही मुझको पुकारे कोई !!
ज़िन्दगी दर्द सही, प्यार के क़ाबिल न सही,
मेरे रंगों में मेरा रूप संवारे कोई !
जीती बाज़ी को हार के भी मैं उदास नहीं,
मेरी हारी हुई बाज़ी से भी हारे कोई !
राख कर डाली किसी नूर ने हस्ती मेरी,
राख मल-मल के मेरी रूह निखारे कोई !
तू नहीं, चाँद नहीं और सितारे भी नहीं,
किस तरह से ये' सियह रात गुजारे कोई !
चोट पर चोट से सियाह हुआ हर पहलू,
दम निकलता है अगर फूल भी मारे कोई !
बाँसुरी-जैसी बजे घाटियों की तनहाई,
किस क़दर प्यार से 'सिन्दूर' पुकारे कोई !
मेरी आवाज़ में ही मुझको पुकारे कोई !!
ज़िन्दगी दर्द सही, प्यार के क़ाबिल न सही,
मेरे रंगों में मेरा रूप संवारे कोई !
जीती बाज़ी को हार के भी मैं उदास नहीं,
मेरी हारी हुई बाज़ी से भी हारे कोई !
राख कर डाली किसी नूर ने हस्ती मेरी,
राख मल-मल के मेरी रूह निखारे कोई !
तू नहीं, चाँद नहीं और सितारे भी नहीं,
किस तरह से ये' सियह रात गुजारे कोई !
चोट पर चोट से सियाह हुआ हर पहलू,
दम निकलता है अगर फूल भी मारे कोई !
बाँसुरी-जैसी बजे घाटियों की तनहाई,
किस क़दर प्यार से 'सिन्दूर' पुकारे कोई !
No comments:
Post a Comment