झुक गये काँधों को फिर से आज़माना चाहिये |
इन को कुछ दिन बोझ तेरा भी उठाना चाहिये ||
हिचकियाँ आईं तो उस की, याद आकर रह गयी,
दिल ये कहता है उसे इस सिम्त आना चाहिये |
ये दरो-दीवार तेरे कान में कहने लगे,
अब तो तुझको और ही कोई ठिकाना चाहिये |
साथ तेरे कौन है इससे तुझे निस्बत नहीं,
ग़ैर को भी गमसुमारी का बहाना चाहिये |
तू बड़ा शायर है तो इन्सान उससे भी बड़ा,
ये हकीक़त अब जहाँ को, मान जाना चाहिये |
जो न समझे शेर, लेकिन साथ दे 'सिन्दूर' का,
ऐसा भोला दोस्त सीने से लगाना चाहिये |
इन को कुछ दिन बोझ तेरा भी उठाना चाहिये ||
हिचकियाँ आईं तो उस की, याद आकर रह गयी,
दिल ये कहता है उसे इस सिम्त आना चाहिये |
ये दरो-दीवार तेरे कान में कहने लगे,
अब तो तुझको और ही कोई ठिकाना चाहिये |
साथ तेरे कौन है इससे तुझे निस्बत नहीं,
ग़ैर को भी गमसुमारी का बहाना चाहिये |
तू बड़ा शायर है तो इन्सान उससे भी बड़ा,
ये हकीक़त अब जहाँ को, मान जाना चाहिये |
जो न समझे शेर, लेकिन साथ दे 'सिन्दूर' का,
ऐसा भोला दोस्त सीने से लगाना चाहिये |
No comments:
Post a Comment