मुझे प्रभाती किरणों ने जो
दिया, उसी को बाँट रहा हूँ
मैं दर्पण हूँ दर्पण जैसा
अपना जीवन काट रहा हूँ
कभी अँधेरा था राहों पर
कुंठा की टेढ़ी गलियां थी
फिर शायद उजास छाया जो
भरी खेत की सब फलियाँ थी
आज उजाले की आभा से
सभी दूरियां पाट रहा हूँ
सावन-भांदों- सी बरसातें
हैं बस अब इतिहास कथाएं
वरद हुई जब विहंस शारदा
बिसर गयी सालती व्यथाएं
अब अपना एकांत सनातन
नहीं भीड़ की बाट रहा हूँ
दिया, उसी को बाँट रहा हूँ
मैं दर्पण हूँ दर्पण जैसा
अपना जीवन काट रहा हूँ
कभी अँधेरा था राहों पर
कुंठा की टेढ़ी गलियां थी
फिर शायद उजास छाया जो
भरी खेत की सब फलियाँ थी
आज उजाले की आभा से
सभी दूरियां पाट रहा हूँ
सावन-भांदों- सी बरसातें
हैं बस अब इतिहास कथाएं
वरद हुई जब विहंस शारदा
बिसर गयी सालती व्यथाएं
अब अपना एकांत सनातन
नहीं भीड़ की बाट रहा हूँ
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