हम अजाने रहे नाम
होते हुये !
एक तुम्हारे रहे
आम होते हुये !
पास उनके पहुँचना
न मुमकिन हुआ,
हाथ में
एक पैगाम होते
हुये !
तोड़ दिल ज़िन्दगी
का न हम जा सके,
मौत के घर
बहुत काम होते हुये !
बन्दगी हर डगर, हर
नज़र से मिली,
एक ज़माने
से बदनाम होते हुये !
यूँ तो बिकने को
हर चीज बिकती रही,
कुछ ख़रीदा
नहीं दाम होते
हुये !
एक अरसे
से पीते-पिलाते रहे,
प्यास हर
बार अंजाम होते हुये !
इस जहाँ को न हम
मैकदा कह सके,
आज हर हाथ
में जाम
होते हुये !
सामने दौर-पर-दौर
चलते रहे,
हम रहे दूर
खैयाम होते हुये !
आज तक तो कभी हमने
देखा नहीं,
आखरी दाँव
नाकाम होते हुये !
दिन ही कुछ ऐसे
‘सिन्दूर’ अब आ गये,
आह भरते
हैं आराम होते
हुये !
No comments:
Post a Comment