थोड़ी-सी राहत थी
आज ज़रा फुर्सत थी,
उस टोले चला गया
उसके घर जाना
क्या, रोज़-रोज़ होता है !
सहज दिन बिताना,
क्या रोज़-रोज़ होता है !
मोढ़े पर बैठ
कंठ-तक गोरस पी आया,
गन्ने से मीठे पल,
कलयुग में जी आया,
थोड़ी-सी राहत थी,
उस टोले चला गया
रीझना-रिझाना,
क्या रोज़-रोज़ होता है !
रूठना-मनाना, क्या
रोज़-रोज़ होता है !
झिलमिल बहुरूप
नैन-कोरों में ठहर गये,
रूढ़ हुए शब्दों को
अर्थ मिले नये-नये,
कैसी-कुछ चाहत थी,
उस टोले चला गया
मन को गा पाना
क्या रोज़-रोज़ होता है !
छेड़ना तराना, क्या
रोज़-रोज़ होता है !
मौज से फटेंगी अब
कितनी ही संधायें,
लोकगीत गायेंगी,
मूक-बधिर यात्राएँ,
वक्त की इनायत थी,
उस टोले चला गया !
ख़ुद पर इतराना,
क्या रोज़-रोज़ होता है !
साथ दे ज़माना,
क्या रोज़-रोज़ होता है !
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