पत्थरों के इस महल में
कुछ आलता रंगे क़दमों
के धूमिल से निशान दिखे
वर्षों पहले नवाँकुरित सपनों को
आँचल में सहेजे गृह प्रवेश करती
किशोरी नववधू के भीतर आते
पाँवों की छाप कुछ धूमिल सी थी
और कुछ चटक सी लगती कभी
अरे बस एक हाथ की दूरी पर
बाहर की ओर जाते क़दमों के
निशान सुर्ख़ लाल चटक से
किसके हैं ? ध्यान से देखो
इन पत्थरों की गूँगी बहरी
दीवारों की दरारों में
अपनी उम्र के सारे बसंत भर
पतझर लिये इस ऊँची ड्योढ़ी
को लाँघ कर बाहर जाती हुई
उसी किशोरी के तलवों से
रिसते हु़ये रक्त की छाप है
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