रोज़ जब रात को बारह का
गज़र होता है,
यातनाओं के
अँधेरें में सफ़र होता है !
कोई रहने की जगह है मेरे
सपनों के लिए,
वो घरौंदा सही, मिट्टी का
भी घर होता है !
सिर के सीने में कभी, पेट
से पावों में कभी,
एक जगह हो तो कहें दर्द इधर होता है !
ऐसा लगता है कि उड़कर भी
कहाँ पहुँचेंगें,
हाथ में जब कोई टूटा हुआ
पर होता है !
सैर के वास्ते सड़कों पर
निकल आते थे ,
अब तो आकाश से पथराव का
डर होता है !
दुष्यंत जी की गजलों का जवाब नहीं।
ReplyDeleteदुष्यंत जी की गजलों का जवाब नहीं।
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