Monday, March 16, 2015

बेटियाँ - अलोक श्रीवास्तव

ll बेटियाँ ll
कोई चेहरा है कोमल कली का
रूप कोई सलोनी परी का

इनसे सीखा सबक़ ज़िंदगी का
बेटियाँ तो हैं लम्हा ख़ुशी का


ये अगर हैं तो रौशन जहाँ है
ये ज़मीनें हैं और आसमाँ है

है वजूद इनसे ही आदमी का
बेटियाँ तो हैं लम्हा ख़ुशी का

हमने रब को तो देखा नहीं पर
नूर ये हैं ख़ुदा का ज़मीं पर

एक एहसास हैं रौशनी का
बेटियाँ तो हैं लम्हा ख़ुशी का

इनसे इनकी अदाएँ न छीनो
इनसे इनकी सदाएँ न छीनो

हक़ इन्हें भी तो है ज़िंदगी का
बेटियाँ तो हैं लम्हा ख़ुशी का

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