कहीं क्षितिज में देख रही है
जाने क्या क्या सोंच रही है
किसको हंसी बेंच दी इसने
किस चिंतन में पड़ी हुई है
जाने क्या क्या सोंच रही है
किसको हंसी बेंच दी इसने
किस चिंतन में पड़ी हुई है
नारी व्यथा किसे समझाएं, गीत और कविताई में
कौन समझ पाया है उसको, तुलसी की चौपाई में
उसे पता है,पुरुष बेचारा
पीड़ा नहीं समझ पायेगा
पीड़ा नहीं समझ पायेगा
दीवारों में रहा सुरक्षित
कैसे दर्द, समझ पायेगा
पौरुष कबसे वर्णन करता, आयी मोच कलाई में
पीड़ा,व्यथा, वेदना कैसे
संग निभाएं बचपन का
कैसे माली को समझाएं
कष्ट, कटी शाखाओं का
सबसे कोमल शाखा झुलसी,अनजानी गहराई में
कितना फूट फूट कर रोयी,इक बच्ची तनहाई में
बेघर के दुःख कौन सुनेगा ,
कैसे उसको समझ सकेगा ?
अपने रोने से फुरसत कब
जो नारी को समझ सकेगा ?
कैसे छिपा सके तकलीफें, इतनी साफ़ ललाई में
कैसे छिपा सके तकलीफें, इतनी साफ़ ललाई में
भरा दूध आँचल में लायी, आंसू मुंह दिखलाई में
कैसे सबने उसके घर को
सिर्फ,मायका बना दिया
और पराये घर को सबने
उसका मंदिर बना दिया
कवि कैसे वर्णन कर पाए , इतना दर्द लिखाई में
कैसी व्यथा लिखा के लायी,अपनी मांगभराई में
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