तू है जहाँ, वहां
आ पाना
तन के वश की बात
नहीं है,
इस तन से नाता
टूटे तो
तुझसे मिलना हो
सकता है !
आँखों में तैरती
उदासी, लहराती आंसू की छाया,
ऐसा लगे, कि मेरी
काया में उतरी है तेरी काया;
दर्पण ने इस
विह्वलता को
सहज योग का नाम
दिया है,
दर्पण से
नाता टूटे तो
तुझसे मिलना हो
सकता है !
गन्ध बने
उच्छ्वास, प्राण का गुह्य द्वार बरबस खुल जाये,
तेरे साये
से लगते हैं, मुझको
मेरे-अपने साये ;
उपवन ने इस
दिवा-स्वप्न को
महामिलन तक कह
डाला है,
उपवन से
नाता टूटे तो
तुझसे मिलना हो
सकता है !
मैं जागूँ तो नींद
सताये, ओ’ सौऊ तो नींद न आये,
मंदिर में उदास हो
जाऊं, मैखाने में जी घबराये;
यह मन मेरी इस गति
को ही
दुर्लभ गति कह बहलाता
है,
इस मन से नाता
टूटे तो
तुझसे मिलना हो
सकता है !
बेसुध कर जाती हैं
सुधियाँ, चेतन कर जाती मदहोशी,
मैं विदेह की
तृषा, तृप्ति की नजरों में करुणा का दोषी;
दर्शन मेरे चिर
यौवन को
काल-सिद्धि कह कर
छलता है,
दर्शन से नाता
टूटे तो
तुझसे मिलना हो
सकता है !
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