सुधा भी पी नहीं जाती
आज को मैंने जिया कल कि प्रतीक्षा में !
एक छल है, दूसरे छल की प्रतीक्षा में !
बह गयी आकाशगंगा में करुण-गाथा,
गा रहा मैं अरुण छंदों में, वरुण-गाथा,
ये नयन हैं, कौन-से जल की प्रतीक्षा में !
एक छल है, दूसरे छल की प्रतीक्षा में !
आँसुओं का अतल मन्थन कर चुका हूँ मैं,
रत्न-कोषों को अमृत से भर चुका हूँ मैं,
कल्पतरु भी है, किसी फल की प्रतीक्षा में !
एक छल है, दूसरे छल की प्रतीक्षा में !
अब तृषा को तृप्ति की सुधि भी नहीं आती,
वारुणी तो क्या सुधा भी पी नहीं जाती,
चल-अचल पल हैं, सकल-पल कि प्रतीक्षा में !
एक छल है, दूसरे छल की प्रतीक्षा में !
No comments:
Post a Comment