सो न सका कल याद तुम्हारी आई
सारी रात !
और पास ही बजी कहीं शहनाई सारी
रात !
मेरे बहुत चाहने पर भी नींद न
मुझ तक आई,
जहर-भरी जादूगरनी-सी मुझको लगी
जुन्हाई,
मेरा मस्तक सहला कर बोली मुझसे
पुरवाई,
दूर कहीं दो आँखें भर-भर आई
सारी रात !
और पास ही बजी कहीं शहनाई सारी
रात !
गगन बीच रुक तनिक चन्द्रमा लगा
मुझे समझाने,
मनचाहा मन पा जाना है खेल नहीं
दीवाने,
और उसी क्षण टूटा नभ से एक
नक्षत्र अजाने,
देख जिसे मेरी तबियत घबराई
सारी रात !
और पास ही बजी कहीं शहनाई सारी
रात !
रात लगी कहने सो जाओ, देखो
कोई सपना,
जग ने देखा है बहुतों का रोना
और तड़पना,
वहाँ तुम्हारा क्या, कोई भी
नहीं किसी का अपना,
समझ अकेला मौत मुझे ललचाई सारी
रात !
और पास ही बजी कहीं शहनाई सारी
रात !
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