Sunday, March 16, 2014

कुछ भी नया नहीं लगता है दीवाली में , होली में ! - प्रोफे. राम स्वरुप 'सिन्दूर'

कुछ भी नया नहीं लगता है दीवाली में , होली में !
मेरे लिए बचा ही क्या है , मेरी ख़ाली झोली में !!

जन्मपत्रियों ने तो बंधन में , जकड़ा दो लोगों को ,
कब तक साथ निभेगा योगी , भोगी , चन्दन रोली में !




खुद की कमजोरी को जो दुनिया के सिर मढ़ देते हैं ,
उन्हें पनाह नहीं मिलती है , दिल-वालों की टोली में !

क्यों न आज भी भुला पा रही ये दुनिया 'सिन्दूर' तुझे ,
अब वो बात कहाँ है तुझ में , तेरी मीठी बोली में !

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