एक झरने-सा, कोई, लम्हा हमें गाता रहा !
तू मिला मुझसे, तो कुछ, इस तौर से मझधार में,
दूर हो जाता रहा, आग़ोश में आता रहा !
आईना देखा जो मैंने, तो बड़ी हैरत हुई,
मेरे चेहरे पर तेरा, चेहरा नज़र आता रहा !
वायदों पर वायदों का, सच मुझे मालूम था,
फिर भी भोले दिल को मैं, हर बार समझाता रहा !
वक़्त ने 'सिन्दूर' मुझको एक ऐसा फन दिया !
मैं ग़ज़ल से दर्द को ताउम्र बहलाता रहा !
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