मुझको एहसास की चोटी से उतारे कोई !
मेरी आवाज़ में ही मुझको पुकारे कोई !
ज़िन्दगी दर्द सही, प्यार के काबिल न सही,
मेरे रंगों में मेरा रूप सँवारे कोई !
जीती बाज़ी को हार कर भी मैं उदास नहीं,
मेरी हारी हुई बाज़ी से भी हारे कोई !
राख कर डाली किसी नूर ने हस्ती मेरी,
राख मल-मल के मेरी रूह निखारे कोई !
चोट-पर-चोट कर गई है स्याह हर पहलू,
दम निकलता है अगर फूल भी मारे कोई !
बांसुरी - जैसी बजे घाटियों की तनहाई,
किस कदर प्यार से 'सिन्दूर' पुकारे कोई !
मेरी आवाज़ में ही मुझको पुकारे कोई !
ज़िन्दगी दर्द सही, प्यार के काबिल न सही,
मेरे रंगों में मेरा रूप सँवारे कोई !
जीती बाज़ी को हार कर भी मैं उदास नहीं,
मेरी हारी हुई बाज़ी से भी हारे कोई !
राख कर डाली किसी नूर ने हस्ती मेरी,
राख मल-मल के मेरी रूह निखारे कोई !
चोट-पर-चोट कर गई है स्याह हर पहलू,
दम निकलता है अगर फूल भी मारे कोई !
बांसुरी - जैसी बजे घाटियों की तनहाई,
किस कदर प्यार से 'सिन्दूर' पुकारे कोई !
No comments:
Post a Comment