बिछड़ के तुझसे एक उम्र मैं उदास रहा !
खुदी से दूर, बेख़ुदी के आसपास रहा !!
न ग़मगुसार रहा जो, न गमगियास रहा !
जुनेने-शौक के धोखे में बदहवास रहा !!
उसे कहूँ तो किस तरह से कहूँ बेगाना ,
न दूर-दूर रहा वो, न पास-पास रहा !
तमाम रंग भर दिए जहान में जिसने ,
वो रंगरेज़, यहाँ जोगिया लिबास रहा !
न मैंने देखे कभी तख्तो-ताज के सपने ,
तमाम उम्र कोहेनूर मेरे पास रहा !
किसे पता है कि 'सिन्दूर' की निगाहों मे ,
न कोई आम रहा, औ ' न कोई ख़ास रहा !
खुदी से दूर, बेख़ुदी के आसपास रहा !!
न ग़मगुसार रहा जो, न गमगियास रहा !
जुनेने-शौक के धोखे में बदहवास रहा !!
उसे कहूँ तो किस तरह से कहूँ बेगाना ,
न दूर-दूर रहा वो, न पास-पास रहा !
तमाम रंग भर दिए जहान में जिसने ,
वो रंगरेज़, यहाँ जोगिया लिबास रहा !
न मैंने देखे कभी तख्तो-ताज के सपने ,
तमाम उम्र कोहेनूर मेरे पास रहा !
किसे पता है कि 'सिन्दूर' की निगाहों मे ,
न कोई आम रहा, औ ' न कोई ख़ास रहा !
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