एक बेटे को पिता का समर्पण ...........
बेटा,
नहीं कर पाया फ़ैसले, तुम्हारे प्रति कठोर
जिससे बना पाता तुम्हें मजबूत
दुनिया से लड़ने को
मेरे पिता ने जैसा बनाया है मुझे
कठोर और निष्ठुर, अपनी बेरुखी से
मैं कमजोर रहा पुत्र-मोह में
और बार-बार सीने से लगा
करता रहा अपनी स्वार्थ सिद्दी
जानते हो
जिनके पिता इस स्वार्थ से होते हैं परे
उनके पुत्र, जीवन-भर लड़ने को रहते हैं तैयार संघर्षों से
मैंने भी आत्मसात किया है, पिता की उस क़ुरबानी को
जिसमें नहीं लगाया उन्होंने मुझे , जीवन भर अपने सीने से
ताकि बना रहे मेरा बज्र सा सीना, संघर्षों से लड़ने को
लेकिन
जिस स्नेह को तुम्हें देकर मैंने की है, स्वार्थ पूर्ति
कर्ज चुकाने को, उसी वज्र से सीने का करूँगा
उपयोग
और नहीं छूने दूंगा किसी बला को जीते-जी !
बेटा,
नहीं कर पाया फ़ैसले, तुम्हारे प्रति कठोर
जिससे बना पाता तुम्हें मजबूत
दुनिया से लड़ने को
मेरे पिता ने जैसा बनाया है मुझे
कठोर और निष्ठुर, अपनी बेरुखी से
मैं कमजोर रहा पुत्र-मोह में
और बार-बार सीने से लगा
करता रहा अपनी स्वार्थ सिद्दी
जानते हो
जिनके पिता इस स्वार्थ से होते हैं परे
उनके पुत्र, जीवन-भर लड़ने को रहते हैं तैयार संघर्षों से
मैंने भी आत्मसात किया है, पिता की उस क़ुरबानी को
जिसमें नहीं लगाया उन्होंने मुझे , जीवन भर अपने सीने से
ताकि बना रहे मेरा बज्र सा सीना, संघर्षों से लड़ने को
लेकिन
जिस स्नेह को तुम्हें देकर मैंने की है, स्वार्थ पूर्ति
कर्ज चुकाने को, उसी वज्र से सीने का करूँगा
उपयोग
और नहीं छूने दूंगा किसी बला को जीते-जी !
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