हठ कर गया वसन्त
मन करता है फिर कोई
अनुबन्ध लिखूँ !
गीत-गीत हो जाऊँ, ऐसा
छन्द लिखूँ !
करतल पर तितलियाँ खींच
दें
सोन-सुवर्णी रेखायें,
मैं गुन्जन-गुन्जन हो
जाऊँ
मधुकर कुछ ऐसा गायें,
हठ पद गया वसन्त, कि मैं
मकरन्द लिखूँ !
श्वास जन्म-भर महके, ऐसी
गन्ध लिखूँ !
सरसों की रागारुण चितवन
दृष्टि कर गयी सिन्दूरी,
योगी को संयोगी कह कर
हँस दे वेला अंगूरी,
देह-मुक्ति चाहे, फिर से
रस-बन्ध लिखूँ !
बन्धन ही लिखना है, तो
भुजबन्ध लिखूँ !
सुख से पंगु अतीत,
विसर्जित
कर दूँ जमुना के जल में,
अहम् समर्पित हो जाने
दूँ
आगत से, ऐसा भावी
सम्बन्ध लिखूँ !
हस्ताक्षर में,
निर्विकल्प आनन्द लिखूँ !
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