वासंती-पल जीत गये
जोगी-पल हार गये !
किस चितवन की मूठ
तुम्हारे नैना मार गये !
पीताम्बर मौसम ने
काया-कल्प कर दिया है,
सुमिरन-सधे कंठ में
स्वगत-प्रलाप भर दिया है,
दिवा-स्वप्न तन-मन का
गैरिक रंग उतार गये !
तोड़ मौनव्रत,
अधर तुम्हारा नाम पुकार
गये !
जप-भूली उँगलियाँ,
तितलियाँ पकड़, छोड़ती हैं,
व्यर्थ-गये जीवन के
कितने वर्ष जोड़ती हैं,
रूप-रूप क्षण, अन्तर की
घाटी झंकार गये !
प्राण तुम्हारे लिये
मुक्ति का द्वार नकार
गये !
संयम, दर्पण पर पारे की
तरह फिसलता है,
रसपायी-एकान्त, काल की
चाल बदलता है,
शिखर-तरंगित गन्ध-ज्वार
भव-सागर तार गये !
एक समन्दर क्या,
हम सात समन्दर पार गये !
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