मधुर दिन
बीते-अनबीते !
वर्तमान में नहीं,
इन्हीं दोनों में हम जीते !
यादों के सरगम से
ऊबे,
सपनों के आसव में
डूबे,
आँखें रस पीती
हैं, लेकिन होंठ अश्रु पीते !
मधुर दिन
बीते-अनबीते !
वर्तमान में नहीं,
इन्हीं दोनों में हम जीते !
आतप ने झुठलाई
काया,
सर पर बादल-भर की
छाया,
सूखी पौद हरी कर
देंगें, क्या कपड़े तीते !
मधुर दिन
बीते-अनबीते !
वर्तमान में नहीं,
इन्हीं दोनों में हम जीते !
हम पनघट की राहें
भूले,
मृग मरीचिकाओं में
फूले,
कन्धों के घट पड़े
हुये हैं, रीते के रीते !
मधुर दिन
बीते-अनबीते !
वर्तमान में नहीं,
इन्हीं दोनों में हम जीते !
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