मित्र ,
होता है जब वो उदास
अपने मोबाइल की तरह
दिमाग में अपनों की
'कोंटेक्ट लिस्ट' को खंगाल
निकालना चाहता है एक नाम
और पूछना चाहता है
निवारण, अपनी उदासी का
जब खोजने पर भी नहीं मिलता
उसे वो 'नाम'
तब खो जाना चाहता है वो
गुमनामी की भीड़ में,
तलाशने को 'राहत'
और ठहर जाता है
वहीँ ................
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