अक्सर,,
खाली जेब
अपनी शामो में भटकते हुए
या अभिजात्य भाषा में टहलते हुए
मैं चकरा सा जाता हूँ
कभी कभी
जब मैं
अपने घर का रास्ता भटक जाता हूँ
तब एक परिचित आवाज मेरे कानो में आती हैं
जब मेरी परछाई बड़ बडाती हैं
और बताती हैं
की तुम आज भी पहले जैसे ही भुलक्कड़ हो
बार बार
उन्ही गलियों में भटक जाते हो
जहाँ से पता नहीं कितनी-कितनी बार तुम्हे रास्ता बताया गया हैं
पर शायद तुम्हे बार बार खोने में मजा आता हैं
मेरी परछाई
बड़ बडा कर भी
खिसिया कर भी ,,
आख़िरकार मुझे फिर से रास्ता बताती हैं
काश
मेरी परछाई कभी समझ पाती,
मेरा अकेला होना क्या हैं
और क्या हैं
मेरा जानबूझ कर उन्ही जाने बुझे रास्तो पर भटकना,
और फिर चिड चिड़ा कर मेरी परछाई का मुझे फिर से रास्ता बताना,
ये सब मुझमे कितना भरोसा जगाता हैं
हां कोई हैं
जो मेरे लिए मेरे साथ हैं...
मेरी परछाई को क्या पता,,
अब मुझसे कोई बात ही नहीं करता....................
खाली जेब
अपनी शामो में भटकते हुए
या अभिजात्य भाषा में टहलते हुए
मैं चकरा सा जाता हूँ
कभी कभी
जब मैं
अपने घर का रास्ता भटक जाता हूँ
तब एक परिचित आवाज मेरे कानो में आती हैं
जब मेरी परछाई बड़ बडाती हैं
और बताती हैं
की तुम आज भी पहले जैसे ही भुलक्कड़ हो
बार बार
उन्ही गलियों में भटक जाते हो
जहाँ से पता नहीं कितनी-कितनी बार तुम्हे रास्ता बताया गया हैं
पर शायद तुम्हे बार बार खोने में मजा आता हैं
मेरी परछाई
बड़ बडा कर भी
खिसिया कर भी ,,
आख़िरकार मुझे फिर से रास्ता बताती हैं
काश
मेरी परछाई कभी समझ पाती,
मेरा अकेला होना क्या हैं
और क्या हैं
मेरा जानबूझ कर उन्ही जाने बुझे रास्तो पर भटकना,
और फिर चिड चिड़ा कर मेरी परछाई का मुझे फिर से रास्ता बताना,
ये सब मुझमे कितना भरोसा जगाता हैं
हां कोई हैं
जो मेरे लिए मेरे साथ हैं...
मेरी परछाई को क्या पता,,
अब मुझसे कोई बात ही नहीं करता....................
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