Monday, August 11, 2014

कुछ भी नहीं था मेरे पास - दुष्यंत कुमार (योग संयोग - कविता से )

कुछ भी नहीं था मेरे पास
मेरे हाथ में न कोई हथियार था
न देह पर कवच
बचने की कोई सूरत नहीं थी !

एक मामूली आदमी की तरह
चक्रव्यूह में फँसकर
मैंने प्रहार नहीं किया
सिर्फ चोटें सही
लेकिन हँसकर !

अब मेरे कोमल व्यक्तित्व को
प्रहारों ने कड़ा कर दिया है !




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