हम सड़क के हैं मुसाफ़िर
मील के पत्थर नहीं !
चारणों-बन्दीजनों की भी न हम को चाह है ,
अब अकल्पित लक्ष्य अपने औ' असीमित राह है ,
विश्व सारा घर हमारा
देखते मुड़ कर नहीं !
ऊर्ध्व-श्वासी वेदनायें ह्रदय पर कसती रहीं ,
मुक्त हो पायी न फिर भी फूल को डसती रहीं ,
बांसुरी के रस-वलय हम
बाँस वन के स्वर नहीं !
रौद्र रस की भंगिमा को और कुछ विस्तार दें ,
प्रलय-पल की सूक्तियों को और कुछ नव सार दें ,
चेतना के सूर्य उज्जवल
ठहरते क्षण भर नहीं !
सृष्टि की पीड़ा धनंजय ! मोहमय अवसाद है ,
पार्थ ! गह गांडीव शर यदि चाहता प्रतिवाद है ,
अग्री-कुल की रश्मियाँ हम
जुगनुओं के घर नहीं !
मील के पत्थर नहीं !
चारणों-बन्दीजनों की भी न हम को चाह है ,
अब अकल्पित लक्ष्य अपने औ' असीमित राह है ,
विश्व सारा घर हमारा
देखते मुड़ कर नहीं !
ऊर्ध्व-श्वासी वेदनायें ह्रदय पर कसती रहीं ,
मुक्त हो पायी न फिर भी फूल को डसती रहीं ,
बांसुरी के रस-वलय हम
बाँस वन के स्वर नहीं !
रौद्र रस की भंगिमा को और कुछ विस्तार दें ,
प्रलय-पल की सूक्तियों को और कुछ नव सार दें ,
चेतना के सूर्य उज्जवल
ठहरते क्षण भर नहीं !
सृष्टि की पीड़ा धनंजय ! मोहमय अवसाद है ,
पार्थ ! गह गांडीव शर यदि चाहता प्रतिवाद है ,
अग्री-कुल की रश्मियाँ हम
जुगनुओं के घर नहीं !
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