अपनी आदत है , चुप रहते हैं या फिर बहुत खरा कहते हैं !
हमसे लोग ख़फ़ा रहते हैं !
आंसू नहीं छलकने देंगे - ऐसी कसम उठा रक्खी है,
होंठ नहीं दाबे दांतों से, हमने चीख दबा रक्खी है,
माथे पर पत्थर सहते हैं , छाती पर खंज़र सहते हैं !
पर कहते पूनम को पूनम, मावस को मावस कहते हैं !
हमसे लोग ख़फ़ा रहते हैं !
हम तो इस ख़ुद्दार ज़िंदगी के मानी इतने ही मानें,
जितनी गहरी चोट अधर पर उतनी ही मीठी मुस्कानें,
फ़ाक़े-वाले दिन को पावन एकादशी समझ गहते हैं !
लेकिन मुखिया की ड्योढ़ी पर जा आदाब नहीं कहते हैं !
हमसे लोग ख़फ़ा रहते हैं !
हम स्वर हैं झोपड़पट्टी के रंग महल के फ़ाग नहीं हैं ,
आत्म कथा बाग़ी लपटों की गन्धर्वों के राग नहीं हैं ,
हम चराग़ हैं रात-रात भर दुनिया की खातिर दहते हैं !
अपनी तैराकी उल्टी है धारा में मुर्दे बहते हैं !
हमसे लोग ख़फ़ा रहते हैं !
हमसे लोग ख़फ़ा रहते हैं !
आंसू नहीं छलकने देंगे - ऐसी कसम उठा रक्खी है,
होंठ नहीं दाबे दांतों से, हमने चीख दबा रक्खी है,
माथे पर पत्थर सहते हैं , छाती पर खंज़र सहते हैं !
पर कहते पूनम को पूनम, मावस को मावस कहते हैं !
हमसे लोग ख़फ़ा रहते हैं !
हम तो इस ख़ुद्दार ज़िंदगी के मानी इतने ही मानें,
जितनी गहरी चोट अधर पर उतनी ही मीठी मुस्कानें,
फ़ाक़े-वाले दिन को पावन एकादशी समझ गहते हैं !
लेकिन मुखिया की ड्योढ़ी पर जा आदाब नहीं कहते हैं !
हमसे लोग ख़फ़ा रहते हैं !
हम स्वर हैं झोपड़पट्टी के रंग महल के फ़ाग नहीं हैं ,
आत्म कथा बाग़ी लपटों की गन्धर्वों के राग नहीं हैं ,
हम चराग़ हैं रात-रात भर दुनिया की खातिर दहते हैं !
अपनी तैराकी उल्टी है धारा में मुर्दे बहते हैं !
हमसे लोग ख़फ़ा रहते हैं !
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