सच तुम बहुत देर तक सोये !
इधर यहाँ से , उधर वहाँ तक ,
धूप , चढ़ गई कहाँ-कहाँ तक ,
लोंगों ने सींची फुलवारी
तुमने अब तक बीज न बोये !
दुनिया जगा-जगा कर हारी ,
ऐसी कैसी नींद तुम्हारी ,
लोंगों की भर चुकी उड़ानें
तुमने सब संकल्प डुबोये !
जिनको कल की फ़िक्र नहीं है ,
उनका आगे , जिक्र नहीं है ,
लोंगों के इतिहास बन गये
तुमने सब सम्बोधन खोये !
इधर यहाँ से , उधर वहाँ तक ,
धूप , चढ़ गई कहाँ-कहाँ तक ,
लोंगों ने सींची फुलवारी
तुमने अब तक बीज न बोये !
दुनिया जगा-जगा कर हारी ,
ऐसी कैसी नींद तुम्हारी ,
लोंगों की भर चुकी उड़ानें
तुमने सब संकल्प डुबोये !
जिनको कल की फ़िक्र नहीं है ,
उनका आगे , जिक्र नहीं है ,
लोंगों के इतिहास बन गये
तुमने सब सम्बोधन खोये !
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