Wednesday, October 1, 2014

जले चराग बुझाने की ज़िद नहीं करते - चाँदनी पाण्डेय

जले चराग बुझाने की ज़िद नहीं करते ।
अब आ गए हो तो जाने की ज़िद नहीं करते।

किसी की आँख में आँसू हमे पसंद नहीं
दिलों के जख्म दिखाने की जिद नही करते ।

हमारे साए भी रस्ते में छोड़ जाते हैं
हमारा साथ निभाने की ज़िद नहीं करते।

तुम्हारे संग का भी ज़िक्र छिड़ न जाए कहीं
ग़ज़ल के शेर सुनाने की जिद नही करते।

खला में कोई ईमारत कभी नही टिकती
वहाँ मकान बनाने की ज़िद नहीं करते।

ये शहरे संग है ,पत्थर के लोग रहते हैं
यहाँ पे फूल खिलाने की ज़िद नही करते ।

ज़मीन जैसा कहीं चाँद भी न हो जाए
ज़मीं पे चाँद को लाने की ज़िद नही करते।

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