सब कुछ भूला,
किन्तु न भूले वे लोचन अभिराम !
तुम्हारे लोचन
ललित-ललाम !
चितवन में सपनों
की छाया,
मृग-मरीचिकाओं की
माया,
इन्द्रधनुष- धारे
पलकों में छिपे रहें घनश्याम !
तुम्हारे लोचन
ललित-ललाम !
बात न जो अधरों तक
आये,
दृष्टि सहज में ही
कह जाये,
वे दृग , संकेतों
से ले-लें कैसे-कैसे काम !
तुम्हारे लोचन
ललित-ललाम !
कब की उठी मधुर
मधुशाला,
पर न अभी तक उतरी
हाला
कभी-कभी मैं
हस्ताक्षर में , लिख जाऊं खैयाम !
तुम्हारे लोचन
ललित-ललाम !
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