उन्मन-उन्मन सुबह
और फिर
उन्मन-उन्मन शाम !
दिन के माथे जड़ी
धूल पर उखड़े हुए प्रणाम !
सड़कों पर बदरंग टोपियाँ-झण्डों की भरमार,
चाभी-भरे खिलौनों के जुलूस करते बेगार,
वक़्त गुज़ारे
घोर नास्तिक लेकर
हरि का नाम !
दिन के माथे जड़ी
धूल पर उखड़े हुए प्रणाम !
होश फाख्ता करते
बगुला-भगती शांति-कपोत,
सूरज की रोशनी पी गये, नशेबाज़ खदयोत,
जो जितना बदनाम
हो रहा वह उतना
सरनाम !
दिन के माथे जड़ी
धूल पर उखड़े हुए प्रणाम !
होटल के प्यालों से चिपके क्षमताओं के होंठ,
स्वगत-गालियों में
करते हैं खुद अपने पर चोट,
भीतर-भीतर
युद्ध हो रहा
बाहर युद्ध-विराम !
दिन के माथे जड़ी धूल पर उखड़े हुए प्रणाम !
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