कौन सी मदिरा
पिलाई पीर ने !
आँख मेरी हो गयी
इतनी रसीली,
बात मेरी हो गयी
इतनी नशीली,
पास जो आता, न
जाना चाहता है
ले लिया जग मोल एक
फ़कीर ने !
कौन-सी मदिरा
पिलाई पीर ने !
देह दर्पण-सी दमकने
लग गयी है,
सौ दियों की
ज्योति मन में जग गयी है,
प्राण पर जो
कालिमा वाकी बची थी
पोंछ ली कब, क्या
पता, किस चीर ने !
कौन सी मदिरा
पिलाई पीर ने !
मैं नशे में चूर
होकर भी सजग हूँ,
आँसुओं के साथ रह
भी अलग हूँ,
चेतना सोती नहीं
अब रात में भी
कर दिया आज़ाद हर
जंजीर ने !
कौन सी मदिरा
पिलाई पीर ने !
प्रोफे. रामस्वरूप
‘सिन्दूर’
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