Tuesday, December 23, 2014

मैं जो रोया ........प्रोफे. रामस्वरूप ‘सिन्दूर’




मैं जो रोया, तो खूब रोया औ’ रोना है अभी !
खुद तो भीगा हूँ, तुझे भी भिगोना है अभी !

मुझ प’ खोने के लिये कुछ न रहा है फिर भी,
तेरी खातिर मुझे, कुछ है, कि जो खोना है अभी !


मैं न भर नींद कभी सोया, कोई बात नहीं,
सो-के जागूँ न, ऐसी नींद भी सोना है अभी !

तेरी मंजिल का किसी राह से रिश्ता ही नहीं,
मेरे रहबर ! तुझे गुमराह भी होना है अभी !

उम्र को छोड़ वक्त की नज़र से देख मुझे,
तेरा ‘सिन्दूर’ सलोना था, सलोना है अभी !

प्रोफे. रामस्वरूप ‘स

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