मैं जो रोया, तो खूब रोया औ’ रोना है अभी !
खुद तो भीगा हूँ, तुझे भी भिगोना है अभी
!
मुझ प’ खोने के लिये कुछ न रहा है फिर
भी,
तेरी खातिर मुझे, कुछ है, कि जो खोना है
अभी !
मैं न भर नींद कभी सोया, कोई बात नहीं,
सो-के जागूँ न, ऐसी नींद भी सोना है अभी
!
तेरी मंजिल का किसी राह से रिश्ता ही
नहीं,
मेरे रहबर ! तुझे गुमराह भी होना है अभी
!
उम्र को छोड़ वक्त की नज़र से देख मुझे,
तेरा ‘सिन्दूर’ सलोना था, सलोना है अभी !
प्रोफे. रामस्वरूप ‘स
No comments:
Post a Comment