वचन हारने लगो,
याद जय के क्षण कर लेना !
सामने दर्पण धर
लेना !
ताजमहल की सेजों
पर हम-तुम थे शीश धरे,
और, दृगों में थे
यमुना का निर्मल नीर भरे,
संकल्पों में बंधे
याद वे बंधन कर लेना !
सामने दर्पण धर
लेना !
चिश्ती के मज़ार पर
बाँधें साथ-साथ धागे,
सदा साथ रहने-वाले
दिन हाथ जोड़ माँगे,
किया हर्ष में
दान, याद वह कंगन कर लेना !
सामने दर्पण धर
लेना !
मन-कामेश्वर के
मंदिर में ज्योतित दीप जले,
मुखर व्रतों को
दीप्त शिखाओं ने आशीष दिये,
स्वप्न, सत्य-सा
दिया याद वह दर्शन कर लेना !
सामने दर्पण धर
लेना !
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