Tuesday, December 16, 2014

पंछी ने दृग मूँद, लिये हैं !.................. प्रोफे. रामस्वरूप ‘सिन्दूर’



पंछी ने दृग मूँद, लिये हैं !

कितने ऊँचे आसमान से,
मेघों के पुष्पक विमान से,

छोड़ दिया नादान करों ने,
और पंख भी बांध दिये हैं !


पंछी ने दृग मूँद, लिये हैं !
 



इतनी चेतनता क्षण-क्षण में,
कब आयी होगी जीवन में,

एक घूँट में ही प्राणों ने,
अनगिन सूरज-चाँद पिये हैं !


पंछी ने दृग मूँद, लिये हैं !



कौन कहाँ आँचल फैलाये,
नीचे तो सागर लहराये,

तेज हवाओं के झोंकों ने,
सारे संबल दूर किये हैं !


पंछी ने दृग मूँद, लिये हैं !




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