Wednesday, December 17, 2014

सेज बिछ गई हरसिंगार की ! - प्रोफे. रामस्वरूप ‘सिन्दूर’

 सेज बिछ गई हरसिंगार की !

आज कौन इस पर सोयेगा,
हर सपना यों-ही रोयेगा,

चेतन है झंकार बहुत ही
आज पीर के तार-तार की !
सेज बिछ गई हरसिंगार की !


आंसू सोयें तो सो जायें,
गोरी बाँहों में खो जायें,

इन हंसती किरणों के भय से
या-कि सुरा पी कर बयार की !
सेज बिछ गई हरसिंगार की !

इन पानी उतरे फूलों ने,
शबनम के उतरे झूलों ने,

फिर से कर दी तरल तूलिका
निशि-भर जागे चित्रकार की !
सेज बिछ गई हरसिंगार की !

प्रोफे. रामस्वरूप ‘सिन्दूर’

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