Tuesday, December 16, 2014

भर आया क्यों नीर नयन में - प्रोफे. रामस्वरूप ‘सिन्दूर’



भर आया क्यों नीर नयन में

मैं समीप बैठा हूँ तेरे,
तुझको मेरी छाया घेरे,

मुक्त, मृदुल-शीतल समीर ने,
पीर कौन ढाली तन-मन में !
भर आया क्यों नीर नयन में


तू अपलक कुछ देख रही थी,
किसने तेरी दृष्टि गही थी,

अब न ठीक से मुख भी अपना
दिखता होगा उस दर्पन में !
भर आया क्यों नीर नयन में !

आज रात क्या नींद न आई,
इस बेला में तू अलसाई,

चल, श्रंगार करूँ मैं तेरा
हरसिंगार झरते उपवन में !
भर आया क्यों नीर नयन में !


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