Saturday, April 19, 2014

बहुत दिनों के बाद खिड़कियाँ खोली हैं - डॉ. कुंअर बेचैन

बहुत दिनों के बाद खिड़कियाँ खोली हैं
ओ वासंती पवन ! हमारे घर आना !

जड़े हुये थे ताले सारे कमरों में ,
धूल-भरे थे आले सारे कमरों में ,
उलझन और तनावों के रेशे वाले
पुरे हुये थे जाले सरे कमरों में

बहुत दिनों के बाद सांकलें डोली हैं ,
ओ वासंती पवन हमारे घर आना !


एक थकन-सी थी नाव भाव-तरंगों में ,
मौन उदासी थी वाचाल उमंगों में ,
लेकिन आज समर्पण की भाषा बोले
मोहक-मोहक प्यारे-प्यारे रंगों में

बहुत दिनों बाद खुशबुएँ घोली हैं ,
ओ वासंती पवन ! हमारे घर आना !

पतझर ही पतझर था मन के मधुवन में ,
गहरा सन्नाटा-सा था अंतर्मन में ,
लेकिन अब गीतों की स्वच्छ मुंडेरी पर
चिंतन की छत पर , भावों के आँगन में

बहुत दिनों के बाद चिरिइयां बोली हैं
ओ वासंती पवन ! हमारे घर आना !


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