सुनो,
तुम्हेँ खोकर ही
मैँने पूरा पाया है.
अब ना तुम्हेँ पाने की कोशिश
ना ही है खोने का ख़ौफ़...
भूल चुकी हूँ माज़ी
नज़र मेँ संजोया है
सुनहरा कल....
अकेली हूँ,
लेकिन नहीँ तन्हा
हमसफर बनाया है
स्वाभिमान को,
निज सम्मान को...
पाना है संसार,
थामना है इस मुट्ठी मेँ
अपने हिस्से का पूरा आसमान�।
आपके इस सम्मान के लिये तहे दिल से शुक्रिया :)
ReplyDeleteवाह.....बहुत खूब...आपकी रचना यकीनन महिलाओं की मानसिकता को सम्बल प्रदान करने वाली है।
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