Sunday, April 13, 2014

कृष्ण मुरारी पहरिया , बाँदा (उत्तर प्रदेश ) के दो गीत

१.
दाह नहीं है, शीतलता है
मन छाया-छाया चलता है

सभी हौसले पस्त हो गए
लड़ने के, बदला लेने के
मौलिकता के, चमक दमक
अपनी नाव अलग खेने के

क्रांति और उकसाने वाली
भाषा का नाटक खलता है

अब तो शांत झील जैसा सुख
अभ्यंतर में रचा-बसा है
विस्मृति में इतिहास पुराना
कब सर्पों ने उसे डंसा है

उसके भीतर झिलमिल-झिलमिल
राग भरा सपना पलता है

2.
एक दिया चलता है आगे-
आगे अपने ज्योति बिछाता
पीछे से मैं चला आ रहा
कंपित दुर्बल पाँव बढाता

दिया जरा-सा, बाती ऊँची
डूबी हुई नेह में पूरी
इसके ही बल पर करनी है
पार समय की लम्बी दूरी

दिया चल रहा पूरे निर्जन
पर मंगल किरणें बिखराता

तम में डूबे वृक्ष-लताएँ
नर भक्षी पशु उनके पीछे
यों तो प्राण सहेजे साहस
किन्तु छिपा भय उसके नीचे

ज्योति कह रही, चले चलो अब
देखो वह प्रभात है आता

1 comment:

  1. Hi Sir, noticed that you have shared a couple of poems of Pahariya ji online a few years back. How you got those poems? Do you have any connections with his family? I am working on publishing a book of him. Grateful to go through my recent on my FB today to get connected for this cause.

    Thanks,
    Upendra Singh
    9871423233

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