कटे पंख-वाले पंछी-सी
तड़प उठी फिर याद पुरानी !
घुमड़-घुमड़ आये अंतस में
आकुलता के घन कजरारे ,
सुधि के झितिज छोर पर दमके
क्षण-जीवी बेसुध उजियारे ,
फिर ज्यों का त्यों घुप अँधियारा
फिर अँधियारे की मनमानी !
चातक , मोर-पपीहे मचले
मचल-मचल के शान्त हो गये ,
कोलाहल-वाले बीते पल
जाने कब एकान्त हो गये ,
जाने कब से बने हुये हैं
एकाकी पल अवढर दानी !
यह क्या हुआ पीर को , उमड़ी
और नयन का नीर हो गई ,
सहमी ठिठकी और अचानक
जाने क्यों गंभीर हो गई ,
पीर कसक की बनी सहेली
और कसक हो गयी सयानी !
तड़प उठी फिर याद पुरानी !
घुमड़-घुमड़ आये अंतस में
आकुलता के घन कजरारे ,
सुधि के झितिज छोर पर दमके
क्षण-जीवी बेसुध उजियारे ,
फिर ज्यों का त्यों घुप अँधियारा
फिर अँधियारे की मनमानी !
चातक , मोर-पपीहे मचले
मचल-मचल के शान्त हो गये ,
कोलाहल-वाले बीते पल
जाने कब एकान्त हो गये ,
जाने कब से बने हुये हैं
एकाकी पल अवढर दानी !
यह क्या हुआ पीर को , उमड़ी
और नयन का नीर हो गई ,
सहमी ठिठकी और अचानक
जाने क्यों गंभीर हो गई ,
पीर कसक की बनी सहेली
और कसक हो गयी सयानी !
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