बाढ़ आई थी इसी ठाँव बिना आहट के
बह गया मेरा बसा गाँव बिना आहट के
कैसा मेहमान है ये दर्द कि बस आ पहुँचा
भोर होते ही बिना कांव, बिना आहट के
जल गया रेशमी ख़्वाबों से बुना चंदोबा
हट गई सर से मेरे छांव, बिना आहट के
कैसा बंधन मेरे दिल ने ये लगाया मुझ पर
थम गए बढ़ते हुए पाँव, बिना आहट के
उम्र के दश्त में भटकाव से लड़ते-लड़ते
ज़िन्दगी हार गई दाँव, बिना आहट के
'रेनू' सांकल तो निराशा की ज़रा खोलके देख
कौन आया है तेरे गाँव, बिना आहट के
बह गया मेरा बसा गाँव बिना आहट के
कैसा मेहमान है ये दर्द कि बस आ पहुँचा
भोर होते ही बिना कांव, बिना आहट के
जल गया रेशमी ख़्वाबों से बुना चंदोबा
हट गई सर से मेरे छांव, बिना आहट के
कैसा बंधन मेरे दिल ने ये लगाया मुझ पर
थम गए बढ़ते हुए पाँव, बिना आहट के
उम्र के दश्त में भटकाव से लड़ते-लड़ते
ज़िन्दगी हार गई दाँव, बिना आहट के
'रेनू' सांकल तो निराशा की ज़रा खोलके देख
कौन आया है तेरे गाँव, बिना आहट के
No comments:
Post a Comment