गंध बारूद की अब हवाओं में है ।
ख़ूँ बहाने की लत पड़ गई है इन्हें,
एक हिंसक जुनूँ इन ख़ुदाओं में है ।
ख़ूँ बहाने की लत पड़ गई है इन्हें,
एक हिंसक जुनूँ इन ख़ुदाओं में है ।
खुल रही पगड़ियाँ, नुच रही दाढ़ियाँ,
अटपटा-सा ये मंज़र निगाहों में है ।
वाह री ! जम्हूरियत जाऊँ सदके तेरे,
हिटलरी रंग तेरी अदाओं में है ।
ख़ौफ़ दो रंग का मेरे गाँवों में है
अटपटा-सा ये मंज़र निगाहों में है ।
वाह री ! जम्हूरियत जाऊँ सदके तेरे,
हिटलरी रंग तेरी अदाओं में है ।
ख़ौफ़ दो रंग का मेरे गाँवों में है
No comments:
Post a Comment